Thursday, April 24, 2008

आरती

ज्यांके सुर शरणहूँ वन्दित चरण मुनि
निगमहूँ नाहि गम वांके नर नारी की !
खग पति रेल पति गज पति मोर पति
गावे ते ना पावे गति जग महतारी की !
हे री मन मौही मेरे काहे को उदास हो
ध्यावे क्यों ना आस अम्बे दास सुख कारी की !
दोय भुझ वारो नर शरण बचाय लेत
गेहूं शरण मैं तो बीस भुझ वाळी की !

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