सब जानत है प्रताप इजाप सुताप संताप को हरे ही हरे,
जग की जननी जगपालक हो कपूत को पेट भरे ही भरे!
तेरा नाम लिए परिणाम मिले सुख संकट व्याधि टरे ही टरे,
चित चात यही गुण गावत हूँ नित अम्बे सहाय करे ही करे !!
मुझ पे जो ऐसी बनी जननी सुण कौण धणी बिन तेरे हमारो,
कई जन बैर सुनो मम् टेर कृपा का विलोचन कोर निहारो !
संकट की हरणी भरणी माँ शिव को सो दयाल की मौसो विचारों
श्री जगदम्ब कृपा की कलम दया कर के दुःख सिधु सितारों !!
इस कलिकाल महाविकराल मै चाल नहीं कुछ सुजत मईया,
पार पायो निधि को नहीं पावत झुलत हूँ मंझधार मै नईया!
केवट को सुधि नाम गति पुनि वायु महा विपरीत भेवईया
राखियो लाज तूँ ही जगदम्बे तूँ ही भवसागर पार करईया!!
Monday, September 21, 2009
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