Wednesday, April 23, 2008

दोहा

1 -देवी देश-विदेश फिरूं मने मत ज्या जो भूल,
मात करनला दया राख्जे मैं थारे चरणा री धूल,


2 -हुन्तो थारो भगत हूँ थारो ही दास,
भीड़ पड्या आवे भगवती पुरण है विश्वास!
देशाणो दुःख मेटणो सदा ही बरसे सुख,
दिन उगता दर्षण करूँ माँ करनादे रो मुख!!


3 -पूत-कपूत जाण,
म्हाने भी तो ज्ञान दो आप गुणा खाण!
सुख देणो दुःख मेटणो माँ करणी रो नाम,
चरण शरण दे चारणी पुनि-पुनि करूँ प्रणाम!!


4 -पूत-कपूत जाण हेलो सुण ज्ये साँवरी,
जीवां थारे ताण काबा वाळी करनला!

चारण कुल अवतार चौतरफी रक्षा करो
सिंग पर होय सवार भीड़ पड्यां आवे भगवती

जय करणी जगतम्ब भूख भगे दर्शन करयाँ
धर माथे भुजलम्ब माँ दाढ़ी वाली डोकरी


काबा करत किलौल करणी रे दरबार मैं,
पाँव धरे इण पौळ धीमो चाले मानवो!

संगमरमर रो धाम दुर्लब बण्यो देवरो,
धोरा मांही धाम धवल धज्जा फेरावली!

कुण लिख सके कविता माता रो मोटो चरित्र,
उचित-अनुचित कागज्या काला करूं!

बढ़ भागी देशाण बिराजे करनला,
मिन्दर इसो महान दुनिया मैं दिसे नाही!

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